🕒 Published 4 months ago (6:11 AM)
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लिया, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने की सिफारिश की गई। इस निर्णय ने न्यायिक हलकों में हलचल मचा दी और कई सवाल उठने लगे कि आखिर ऐसा कदम क्यों उठाया गया।
क्या था पूरा मामला?
सूत्रों के अनुसार, कुछ दिनों पहले जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में अचानक आग लग गई थी। आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड और पुलिस को बुलाया गया। जब आग पर काबू पाया गया और जांच शुरू हुई, तो वहां भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई। चौंकाने वाली बात यह थी कि जब यह घटना हुई, उस समय जस्टिस वर्मा शहर में मौजूद नहीं थे।
पुलिस ने मामले की सूचना उच्च अधिकारियों को दी, और जल्द ही यह मामला मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना तक पहुंचा। CJI ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया और तुरंत सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक बुलाई। कॉलेजियम ने गहन विचार-विमर्श के बाद यह फैसला किया कि जस्टिस वर्मा को तुरंत दिल्ली से बाहर ट्रांसफर किया जाना चाहिए।

क्यों लिया गया तबादले का फैसला?
कॉलेजियम के कुछ सदस्यों का मानना था कि यदि इस गंभीर मामले पर केवल स्थानांतरण करके इसे समाप्त कर दिया जाता है, तो इससे न्यायपालिका की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और जनता का विश्वास भी कमजोर होगा। कुछ जजों का यह भी मत था कि जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा जाना चाहिए, और यदि वह ऐसा करने से इनकार करते हैं, तो उनके खिलाफ संवैधानिक प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।
न्यायिक प्रक्रिया क्या कहती है?
संवैधानिक अदालतों के जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार, कदाचार या न्यायिक अनियमितता के आरोपों से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में एक आंतरिक प्रक्रिया निर्धारित की थी। इसके अनुसार, यदि किसी जज के खिलाफ शिकायत मिलती है, तो CJI पहले जज से जवाब मांगते हैं। यदि जवाब संतोषजनक नहीं होता या मामला गंभीर प्रतीत होता है, तो CJI एक आंतरिक जांच समिति का गठन करते हैं।
इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक जज और अन्य हाईकोर्ट के दो मुख्य जज शामिल होते हैं। यदि जांच के बाद CJI को लगता है कि जज का आचरण गंभीर प्रकृति का है, तो उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा जाता है। यदि जज इस्तीफा देने से मना कर दें, तो CJI संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत संसद में उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सरकार को पत्र लिख सकते हैं।
न्यायपालिका की साख का सवाल
यह मामला केवल एक जज के ट्रांसफर से जुड़ा नहीं है, बल्कि इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े होते हैं। कॉलेजियम के इस फैसले से यह साफ संदेश जाता है कि न्यायपालिका में अनुशासन और नैतिकता सर्वोपरि है और किसी भी प्रकार की अनियमितता को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
अब देखना होगा कि जस्टिस यशवंत वर्मा इस फैसले के बाद क्या रुख अपनाते हैं और क्या यह मामला यहीं समाप्त हो जाएगा या आगे और कानूनी प्रक्रियाएं अपनाई जाएंगी।
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