मराठी भाषा विवाद में BJP सांसद निशिकांत दुबे का तीखा बयान: “हमारे पैसों पर पलते हो… बिहार आओ, पटक-पटक कर मारेंगे”

By Hindustan Uday

🕒 Published 4 weeks ago (10:27 PM)

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर चल रहे विवाद ने अब गंभीर राजनीतिक मोड़ ले लिया है। राज्य में हाल ही में उन व्यापारियों के साथ मारपीट की गई जो मराठी भाषा नहीं बोल पाए। इस घटना पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने कहा था कि “बेवजह किसी को मत मारो, लेकिन अगर कोई ज़्यादा नाटक करता है तो उसके कान के नीचे बजाओ और अगली बार वीडियो मत बनाओ।”

राज ठाकरे के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे ने तीखे तेवर दिखाए। उन्होंने कहा, **”अगर आप इतने बड़े ‘बॉस’ हैं तो महाराष्ट्र से बाहर आइए—बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु आइए, पटक-पटक कर मारेंगे। हमारे पैसों पर पलते हो और बात करते हो मराठी बोलने की?”

मराठी बनाम हिंदी विवाद अब नेताओं की जुबानी जंग तक पहुंचा

निशिकांत दुबे ने महाराष्ट्र की औद्योगिक स्थिति पर सवाल खड़े करते हुए कहा, “टाटा की पहली फैक्ट्री बिहार में बनी थी। माइंस हमारे पास हैं—झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में। सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री गुजरात में है। महाराष्ट्र के पास क्या है?”

उन्होंने आगे कहा, “मराठी एक आदरणीय भाषा है, लेकिन इसका नाम लेकर हिंसा करना स्वीकार्य नहीं। अगर हिम्मत है, तो तमिल, तेलुगु और उर्दू बोलने वालों पर भी हाथ उठाकर दिखाओ। हिंदी भाषी कोई कमज़ोर नहीं है।”

“माहिम दरगाह के सामने हिम्मत है तो जाकर दिखाओ”

बीजेपी सांसद ने दावा किया कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे आगामी **BMC चुनाव** को ध्यान में रखकर “सस्ती राजनीति” कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “अगर उनमें हिम्मत है तो माहिम दरगाह के सामने जाकर किसी हिंदी या उर्दू भाषी को मारकर दिखाएं।”

“अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है” – एक्स पर हमला

इससे पहले निशिकांत दुबे ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर भी बयान दिया था:
“अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है। अगर हिम्मत है तो महाराष्ट्र में उर्दू भाषियों को मार कर दिखाओ।”
उन्होंने यह भी कहा, “कौन कुत्ता है, कौन शेर—ये जनता तय करेगी।”

पृष्ठभूमि: भाषा के नाम पर हिंसा

यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र में कुछ दुकानदारों और व्यापारियों पर सिर्फ इसलिए हमला किया गया क्योंकि वे मराठी नहीं बोल पाए। इसके बाद MNS कार्यकर्ताओं और हिंदी भाषी समुदाय के बीच टकराव की स्थिति बन गई, जो अब नेताओं की बयानबाज़ी के ज़रिए और भड़क गई है।

महाराष्ट्र का यह भाषा विवाद अब सिर्फ सामाजिक नहीं, बल्कि राजनीतिक अखाड़ा बन चुका है। एक ओर क्षेत्रीय अस्मिता की बात की जा रही है, तो दूसरी ओर राष्ट्रव्यापी एकता और सम्मान की मांग हो रही है। आने वाले दिनों में इस विवाद का क्या रुख होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

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