पटना: बिहार की राजनीति हमेशा से ही उतार-चढ़ाव भरी रही है। यहां किसी भी समय विधानसभा चुनाव का ऐलान हो सकता है। इस समय राज्य में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं और 243 सीटों के लिए सभी पार्टियाँ चुनाव प्रचार में जुटी हुई हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार की राजनीति में ऐसा समय भी आया था जब एक ही साल में दो बार चुनाव कराना पड़ा और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था।
विषयसूची
पहला चुनाव: बहुमत न मिलने की दुविधा
साल 2005 में फरवरी महीने में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 सीटें जीतीं। जदयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ा और 55 जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने 103 सीटों में से 37 पर जीत दर्ज की। कांग्रेस ने 84 सीटों में से सिर्फ 10 सीटें जीतीं। बहुमत के लिए 122 सीटों की जरूरत थी, लेकिन कोई भी पार्टी यह आंकड़ा हासिल नहीं कर पाई। परिणामस्वरूप, सरकार बन नहीं सकी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
दूसरा चुनाव: जदयू-बैध गठबंधन की जीत
राष्ट्रपति शासन के बाद अक्टूबर-नवंबर में बिहार में फिर से चुनाव करवाए गए। इस बार जदयू ने 139 सीटों में से 88 पर जीत हासिल की और राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। भाजपा ने 102 सीटों में से 55 जीत हासिल की। राजद ने 175 सीटों में से 54 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 51 सीटों में से केवल 9 सीटें ही मिलीं। इस चुनाव के परिणामों के बाद जदयू और भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने।
बिहार की राजनीति का सबक
साल 2005 के ये चुनाव यह दिखाते हैं कि बिहार की राजनीति कभी भी स्थिर नहीं रहती। बहुमत न मिलने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लग सकता है और राजनीतिक परिस्थितियाँ बहुत जल्दी बदल सकती हैं।
अगर खबर पसंद आई हो तो इसे शेयर ज़रूर करें!

