Bihar Chunav 2025: : चुनाव आयोग के SIR अभियान का विरोध सिर्फ संयोग नहीं, विपक्ष की गहरी रणनीति?

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By Hindustan Uday

🕒 Published 3 weeks ago (4:44 PM)

SIR की टाइमिंग पर सवाल, विपक्ष को सता रहा वोट कटने का डर

नई दिल्ली। बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर विपक्षी दलों में भारी नाराज़गी है। उन्हें यह केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं बल्कि राजनीतिक साजिश लग रही है। विपक्षी नेताओं को लगता है कि मतदाता सूची में उनके समर्थकों के नाम काटने का प्रयास किया जा रहा है। उन्हें इसकी टाइमिंग और दस्तावेजों की मांग पर आपत्ति है। कुछ इसे NRC की ओर बढ़ा कदम मान रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई की तारीख 10 जुलाई तय की गई थी, लेकिन अदालत ने फिलहाल स्टे देने से इनकार कर दिया। यह विपक्ष के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

बंद और विरोध प्रदर्शन में उतरा विपक्ष

चुनाव आयोग की प्रक्रिया के विरोध में विपक्ष ने बिहार बंद बुलाया। बंद में आरजेडी, वाम दल और कांग्रेस ने हिस्सा लिया। राहुल गांधी भी पटना की सड़कों पर उतरे। कई जिलों में बंद का असर दिखा और कुछ जगहों पर जबरन दुकानें बंद कराई गईं, बस और ट्रेन सेवाएं बाधित हुईं। आरजेडी समर्थकों ने पारंपरिक अंदाज में विरोध दर्ज कराया।

25 दिन में 8 करोड़ मतदाता सत्यापन, क्या यह वाकई असंभव है?

विपक्ष का मुख्य तर्क है कि इतने कम समय में इतने बड़े पैमाने पर मतदाता सत्यापन नहीं हो सकता। आयोग ने 1 जुलाई से 26 जुलाई तक की समयसीमा तय की है। विरोध की वजह यह भी है कि दस्तावेजों की मांग से कई लोगों के नाम कट सकते हैं। लेकिन जब सत्यापन के लिए उपलब्ध दस्तावेजों की बात करें तो तस्वीर कुछ और दिखती है।

बैंक खाता, पासपोर्ट और स्कूल सर्टिफिकेट – तीन मजबूत विकल्प

SIR प्रक्रिया के तहत आवश्यक दस्तावेजों में बैंक पासबुक एक विकल्प है। बिहार में दिसंबर 2024 तक 6.15 करोड़ जनधन खाताधारक हैं, यानी अधिकांश के पास एक आवश्यक दस्तावेज पहले से मौजूद है। दूसरा विकल्प पासपोर्ट है, जिसकी संख्या भी पिछले पांच वर्षों में लगभग दोगुनी हो गई है। तीसरा विकल्प स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट है, और जाति सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में दो करोड़ से अधिक लोग मैट्रिक पास हैं।

कागजात तो हैं, फिर विरोध क्यों?

जब 8 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं में से अधिकतर के पास आवश्यक दस्तावेज हैं, तो फिर इसे इतना बड़ा मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है? यह सवाल विपक्ष की मंशा पर भी प्रकाश डालता है। लोकसभा चुनाव के समय विपक्ष ने संविधान और आरक्षण को लेकर जनता में डर फैलाने की कोशिश की थी, लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं। ऐसे में यह आशंका है कि SIR को एक नया नैरेटिव बनाने की कोशिश हो रही है।

क्या यह नया राष्ट्रीय आंदोलन बनेगा?

बिहार हमेशा से आंदोलनों की भूमि रहा है — चाहे वह आजादी की लड़ाई हो या जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति। विपक्ष इस मुद्दे को बिहार से शुरू कर देशभर में फैलाने की कोशिश में है। राहुल गांधी की दिलचस्पी को भी इसी रणनीति से जोड़ा जा रहा है। आने वाले वर्षों में बंगाल और उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं, ऐसे में यह आंदोलन विपक्ष को आगामी चुनावों में धार दे सकता है।

क्या घुसपैठियों की पहचान से घबरा गया है विपक्ष?

वास्तविक चिंता शायद यह है कि SIR की प्रक्रिया से अवैध मतदाता उजागर हो जाएंगे। ऐसे वोटरों की संख्या देश में लाखों में हो सकती है। पहले खुद ममता बनर्जी इस मुद्दे को उठाती थीं, अब वे इनकार कर रही हैं। कांग्रेस, आरजेडी और अन्य विपक्षी दल जिस तरह घुसपैठियों के समर्थन में खड़े रहते हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी राजनीति इन पर निर्भर है। दस्तावेज की मांग से यह तय हो जाएगा कि कौन वैध मतदाता है, और यही बात विपक्ष को परेशान कर रही है।

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