Ashadha Amavasya 25 june 2025 : पितृ अमावस्या: जानिए तिथि, पूजन विधि और धार्मिक महत्व

By Sunita Singh

🕒 Published 1 month ago (4:13 PM)

नई दिल्ली, भक्ति डेस्क :  हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह की अमावस्या का दिन एक विशेष आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व रखता है। इस वर्ष आषाढ़ अमावस्या 25 जून 2025 को शाम 4 बजे तक रहेगी। इसे पितरों की आत्मा की शांति, मोक्ष और परिवार की सुख समृद्धि के लिए एक अत्यंत शुभ और विशेष दिन माना जाता है। इस दिन को पितृ अमावस्या के रूप में भी जाना जाता है।

पितरों का आशीर्वाद पाने का दिन

Ashadha Amavasya 25 june 2025  को ऐसा समय माना जाता है जब पूर्वजों की ऊर्जा सबसे अधिक सक्रिय रहती है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा से किए गए तर्पण, दान और प्रार्थनाएं पितरों को शांति प्रदान करती हैं और वे वंश को समृद्धि के साथ खुशहाली का भी आशीर्वाद देते है । इस मौके पर लोग नदियों में पवित्र डुबकी के बाद लोग अपने पूर्वजों के नाम पर ब्राह्मणों को दान दक्षिणा के साथ गरीबों के लिए लंगर भी लगाते है। इस दिन दान दक्षिणा, भक्ति के कार्यों को पूर्वजों की आत्माओं को शांति और किसी के जीवन में सद्भाव लाने के शक्तिशाली तरीकों के रूप में देखा जाता है। आषाढ़ अमावस्या पुण्य अर्जित करने का बहुत ही अहम दिन है।

भिन्न राज्यों में आषाढ़ अमावस्या के नाम

देश के विभिन्न राज्यों में Ashadha Amavasya 25 june 2025 को अलग-अलग नामों से जाना जाता है । महाराष्ट्र में इस दिन को गतारी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है । जैसे ही सावन का महीना करीब आता है तो लोग मांसाहार और शराब को त्याग देतें हैं । इस तरह से इस अमावस्या को संयम अमावस्या के रूप में भी देखा जा सकता है । इसके अलावा इस अमावस्या को कर्नाटक में भीमना, आंध्र प्रदेश में चुक्कला और गुजरात में हरियाली अमावस्या के रूप में जाना जाता है। हर क्षेत्र इस उत्सव में अपना स्वयं का सांस्कृतिक रीतियों को जोड़ देता है।

सनातन परंपरा की आत्मा है आषाढ़ अमावस्या

आषाढ़ अमावस्या केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अवसर है आत्मचिंतन का, पितृ सम्मान और प्रकृति के पांच तत्वों से जुड़ने का । यह पर्व भक्ति, दान, और श्रद्धा के माध्यम से जीवन में नई सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश कराता है। अमावस्या पर खासतौर से पूर्वजों को स्मरण करते हुए दान-पुण्य करें, साथ ही पारिवारिक एकता और संतुलन के लिए भी प्रार्थना करें । यही सनातन परंपरा की आत्मा है।

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