🕒 Published 5 days ago (11:39 AM)
मुंबई। मुंबई की NIA विशेष अदालत ने 2008 में मालेगांव में हुए बम धमाके मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया गया। कोर्ट ने यह निर्णय 17 साल की लंबी जांच और कई जांच प्रक्रिया के बाद सुनाया। यह धमाका 29 सितंबर 2008 को मालेगांव के अंजुमन चौक में हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।
कोर्ट का फैसला: सरकारी पक्ष साबित नहीं कर सका आरोप
विशेष जज एके लाहोटी ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि मोटरसाइकिल में बम लगाया गया था। कोर्ट के अनुसार, यह साबित नहीं हो पाया कि आरडीएक्स कश्मीर से लाया गया था या मोटरसाइकिल में बम रखे गए थे। जज ने यह भी कहा कि घटना के दौरान घटना स्थल पर कोई स्केच नहीं बनाया गया और फिंगरप्रिंट या अन्य अहम सबूत भी इकट्ठा नहीं किए गए थे।
क्या कहा कोर्ट ने?
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर बाइक की मालिक जरूर थीं, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि बाइक उनके पास थी। इसके अलावा, साजिश की बैठक और विस्फोटक सामग्री की योजना के बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले। सरकारी पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए गए कई गवाहों के बयान भी संदिग्ध थे।
जांच प्रक्रिया पर उठे सवाल
एनआईए ने मामले की जांच करते हुए 323 गवाहों से पूछताछ की थी, जिनमें से 40 गवाहों ने अपने बयानों से मुंह मोड़ लिया। इसके अलावा, गवाहों और जांच अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं। खासकर ATS पर आरोप थे कि उसने गवाहों पर दबाव डालकर बयान दिलवाए थे।
आरोपी और उनका बचाव
इस मामले में बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल श्रीकांत पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, और अन्य आरोपी थे। इन सभी ने खुद को निर्दोष बताया और आरोपों का सामना करते हुए कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। वहीं, पीड़ित पक्ष के वकील ने फैसले को अन्यथा और अन्यायपूर्ण बताया।
राजनीतिक दृष्टिकोण
मालेगांव धमाके के समय महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी, और उस समय राज्य सरकार पर भी गंभीर आरोप लगे थे। अब, कांग्रेस पार्टी इस फैसले का इंतजार कर रही है, क्योंकि इस मामले ने राजनीतिक विवादों को भी जन्म दिया था।
मालेगांव ब्लास्ट केस में यह फैसला न्यायालय में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है। अदालत ने मामले में पेश किए गए सभी सबूतों की गहन जांच के बाद यह फैसला सुनाया कि आरोपी निर्दोष हैं और सबूतों की कमी के कारण उन्हें बरी किया गया।