नई दिल्ली / मॉस्को —
जब दुनिया की दो महाशक्तियां आपसी तनाव की राह पर हों, तब किसी तीसरे देश के कदम बहुत कुछ बयां कर सकते हैं। ऐसा ही कुछ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की हालिया रूस यात्रा के साथ हो रहा है, जो अब केवल एक पूर्व निर्धारित मुलाकात नहीं, बल्कि वैश्विक कूटनीति का प्रतीक बन गई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों ने बीते कुछ दिनों में भारत पर तीखा हमला बोला है — विशेषकर रूस से तेल और रक्षा सौदों को लेकर। ट्रंप ने सोशल मीडिया पोस्ट में भारत पर आरोप लगाया कि वह रूसी कच्चे तेल का जमकर आयात कर रहा है और उसे भारी मुनाफे पर बेच रहा है। इसके साथ ही उन्होंने धमकी दी कि यदि भारत ने अपने रुख में बदलाव नहीं किया, तो 24 घंटे के भीतर भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क (टैरिफ) बढ़ा दिए जाएंगे।
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ट्रंप की चेतावनी और अमेरिका का दूत रवाना
बात सिर्फ चेतावनी तक सीमित नहीं रही। अमेरिका ने विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ को भी इसी सप्ताह रूस भेजा है। वे वहां रूसी नेतृत्व से बातचीत करेंगे। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने उनकी मॉस्को यात्रा की पुष्टि की, लेकिन बैठक के मुद्दों पर चुप्पी साध ली गई है।
यानी एक ओर ट्रंप भारत को घेर रहे हैं, दूसरी ओर अमेरिका रूस से भी बात कर रहा है। और इसी जटिल समय में भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का रूस पहुंचना, एक गहरी रणनीतिक सोच को दर्शाता है।
डोभाल की रूस यात्रा: इत्तेफाक नहीं, संकेत है
सूत्रों की मानें तो डोभाल की यह यात्रा सिर्फ पूर्व नियोजित द्विपक्षीय वार्ता नहीं, बल्कि अमेरिका को भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की कड़ी और शांत प्रतिक्रिया है। भारत इस यात्रा के ज़रिए यह संदेश दे रहा है कि वह अपने फैसले स्वयं लेता है, चाहे दबाव कहीं से भी आए।
मॉस्को में डोभाल रूस के शीर्ष सुरक्षा सलाहकारों से मुलाकात करेंगे, जहां ऊर्जा आपूर्ति, क्षेत्रीय स्थिरता, आतंकवाद निरोध और रक्षा सहयोग जैसे गंभीर मुद्दों पर चर्चा होगी।
भारत ने अमेरिका को दिया करारा जवाब
ट्रंप की टिप्पणी पर भारत का विदेश मंत्रालय भी पीछे नहीं रहा। उसने बयान जारी कर ट्रंप की बातों को “तथ्यों से परे और अनुचित” बताया। मंत्रालय ने दो टूक कहा कि भारत की ऊर्जा खरीद न तो किसी राजनैतिक दबाव के तहत होती है और न ही किसी को जवाबदेह बनाने के लिए। भारत की प्राथमिकता अपने नागरिकों की ज़रूरतें और बाज़ार की स्थिरता है।
क्यों मायने रखती है यह यात्रा?
डोभाल की इस यात्रा से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों को एकजुटता और आत्मनिर्भरता के आधार पर आगे बढ़ा रहा है। अमेरिका हो या कोई और देश, भारत अब अपनी विदेश नीति को दबाव में आकर नहीं, बल्कि रणनीतिक हितों के तहत चलाता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि इसी महीने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी रूस जाने वाले हैं, जो दिखाता है कि भारत-रूस संवाद केवल जारी ही नहीं, बल्कि सक्रिय भी है।
जब अमेरिका अपने टैरिफ के तीर चलाने में व्यस्त है, भारत ने शांत लेकिन सधा हुआ जवाब रूस जाकर दिया है।
डोभाल की यह यात्रा सिर्फ एक दौरा नहीं, बल्कि यह संकेत है कि भारत अपने फैसलों में संप्रभु है और किसी दबाव में नहीं झुकता।


