बेंगलुरु के एक रिटायर्ड अधिकारी की एक भावनात्मक कहानी ने पूरे देश को हिला दिया है। भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी के. शिवकुमार ने अपनी बेटी की मौत के बाद सरकारी प्रक्रिया पूरी करते समय हुए भ्रष्टाचार का दर्द सोशल मीडिया पर साझा किया। उनकी यह पोस्ट देखते ही हजारों लोग भावुक हो गए और कई ने इसे भारत की प्रशासनिक व्यवस्था पर एक गहरा सवाल बताया।
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बेटी की मौत के बाद टूटा परिवार
शिवकुमार की 34 वर्षीय बेटी अक्षया का सितंबर में ब्रेन हैमरेज से निधन हो गया था। इस गहरे सदमे के बीच उन्हें जरूरी औपचारिकताएं पूरी करनी थीं, लेकिन जो कुछ उन्होंने देखा और झेला, उसने उन्हें भीतर तक हिला दिया। लिंक्डइन पर शेयर की गई उनकी पोस्ट अब हटा दी गई है, लेकिन उसमें लिखे शब्दों ने लोगों के दिल को छू लिया।
“हर कदम पर रिश्वत देनी पड़ी”
अपनी पोस्ट में शिवकुमार ने लिखा था कि उन्हें हर जगह रिश्वत देनी पड़ी — एम्बुलेंस से लेकर एफआईआर की कॉपी, डेथ सर्टिफिकेट और यहां तक कि अंतिम संस्कार की औपचारिकताओं तक। उन्होंने आरोप लगाया कि बेलंदूर पुलिस थाने के एक अधिकारी और एक पुलिसकर्मी ने उनसे रिश्वत मांगी और बेहद असंवेदनशील व्यवहार किया। उन्होंने लिखा, “मेरे पास पैसे थे, इसलिए मैंने दे दिए, लेकिन उन गरीब लोगों का क्या जो किसी प्रियजन को खोने के बाद इस तरह के भ्रष्टाचार का सामना करते हैं?”
इंसानियत और संवेदना पर सवाल
शिवकुमार ने अपनी पोस्ट में लिखा कि उन्हें इस पूरी प्रक्रिया में इंसानियत की कमी सबसे ज्यादा खली। उन्होंने सवाल उठाया — “क्या इन अधिकारियों का कोई परिवार नहीं होता? क्या वे नहीं समझते कि किसी पिता के लिए बेटी को खोना कितना बड़ा सदमा होता है? फिर भी पैसे की मांग और बदतमीज़ी!” उन्होंने बताया कि अपनी बेटी का डेथ सर्टिफिकेट लेने के लिए उन्हें बीबीएमपी (BBMP) ऑफिस में पांच दिन तक दौड़ना पड़ा और अंत में अधिक पैसे देने के बाद ही दस्तावेज़ मिल पाया।
सोशल मीडिया पर फैला आक्रोश
जैसे ही शिवकुमार की यह पोस्ट वायरल हुई, लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर बेंगलुरु पुलिस और व्हाइटफील्ड के डीसीपी को टैग करते हुए कार्रवाई की मांग की। हजारों यूज़र्स ने इस घटना को शर्मनाक बताया और कहा कि एक बुजुर्ग पिता को अपनी बेटी के निधन के बाद इस तरह का अनुभव नहीं झेलना चाहिए था।
पुलिस विभाग ने लिया संज्ञान
विवाद बढ़ने के बाद बेंगलुरु सिटी पुलिस ने तत्काल संज्ञान लिया। व्हाइटफील्ड डीसीपी कार्यालय ने अपने आधिकारिक X हैंडल से प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस मामले की विस्तृत जांच शुरू कर दी गई है। बयान में कहा गया, “शिकायत में जिन अधिकारियों का उल्लेख किया गया है, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।”
SI और कांस्टेबल सस्पेंड
जांच के शुरुआती नतीजों के बाद बेलंदूर थाने के एक सब-इंस्पेक्टर (SI) और एक कांस्टेबल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। पुलिस विभाग ने अपने बयान में कहा, “किसी भी परिस्थिति में इस तरह के असभ्य और अनुचित व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हमारे विभाग की प्राथमिकता जनता का विश्वास बहाल करना है।”
लोगों ने कहा – सिस्टम को बदलने की जरूरत
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर भ्रष्टाचार और पुलिस संवेदनहीनता को लेकर फिर से बहस छिड़ गई है। कई लोगों ने कहा कि यह मामला किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की गहराई में छिपी समस्या का प्रतीक है। कई यूज़र्स ने शिवकुमार की हिम्मत की सराहना की कि उन्होंने इतने दर्द के बीच भी आवाज़ उठाई।
के. शिवकुमार की कहानी केवल एक व्यक्ति के अनुभव की नहीं, बल्कि उस भ्रष्ट और असंवेदनशील व्यवस्था की सच्चाई है, जिससे आम आदमी रोज़ दो-चार होता है। यह घटना बताती है कि संवेदना, ईमानदारी और इंसानियत का स्थान किसी भी व्यवस्था में सर्वोच्च होना चाहिए। बेटी को खोने का दर्द तो अपूरणीय है, लेकिन उस दर्द पर भ्रष्टाचार का बोझ किसी भी समाज के लिए शर्म की बात है।
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