🕒 Published 4 hours ago (11:20 PM)
पटना। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर हुए विवाद के बाद अब पश्चिम बंगाल की राजनीति में भी नई हलचल शुरू हो गई है। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अग्रवाल ने सभी राजनीतिक दलों से अनुरोध किया है कि वे जल्द से जल्द अपने बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) की सूची उपलब्ध कराएं। इसके साथ ही बंगाल में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की प्रक्रिया का आगाज़ होने वाला है।
बूथ एजेंट्स की भूमिका अहम
मुख्य चुनाव अधिकारी ने यह निर्देश ऐसे समय में दिया है जब राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक अब मतदाता सूची से किसी नाम को हटाने से पहले संबंधित बूथ लेवल एजेंट की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी भी मतदाता का नाम बिना वजह सूची से न हटाया जाए।
एक लाख से ज्यादा बूथ, दलों पर बढ़ेगा दबाव
सूत्रों के अनुसार बंगाल में बूथों की संख्या बढ़कर एक लाख से अधिक हो सकती है। इस परिस्थिति में सभी राजनीतिक दलों को हर नए बूथ पर एक-एक स्थानीय BLA की नियुक्ति करनी होगी, जो न सिर्फ नाम जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया पर नजर रखेगा बल्कि चुनावी प्रबंधन में भी मदद करेगा। इस बदलाव से दलों के सामने मानव संसाधन की बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है।
ममता सरकार के लिए बड़ी परीक्षा
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह स्थिति एक नई चुनौती बनकर सामने आई है। पिछले चुनावों में टीएमसी और चुनाव आयोग के बीच कई बार तनाव की स्थिति बनी थी। ऐसे में यह देखना होगा कि ममता बनर्जी इस बार चुनाव आयोग की इस नई व्यवस्था पर क्या रुख अपनाती हैं।
निष्पक्षता पर उठ सकते हैं सवाल
टीएमसी पहले भी चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप लगाती रही है। अब जब बूथ लेवल पर राजनीतिक दलों की सक्रियता और बढ़ेगी, तो मतदाता सूची को लेकर एक बार फिर राजनीतिक संग्राम छिड़ सकता है। क्या यह प्रक्रिया पारदर्शिता लाएगी या विवादों को जन्म देगी — यह आने वाला वक्त तय करेगा।
बिहार के बाद अब बंगाल में भी SIR अभियान से चुनावी तपिश महसूस की जा रही है। यह समय ममता बनर्जी के संगठनात्मक कौशल की असली परीक्षा साबित हो सकता है। आने वाले कुछ हफ्ते पश्चिम बंगाल की सियासी दिशा तय करेंगे।