🕒 Published 1 month ago (7:55 AM)
नई दिल्ली। इंजीनियरिंग की दुनिया में कई स्पेशलाइजेशन हैं, लेकिन एयरोस्पेस इंजीनियरिंग को सबसे कठिन और जटिल ब्रांच माना जाता है। हर साल हजारों छात्र बीटेक की पढ़ाई के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन इस खास ब्रांच को चुनने वाले छात्रों को न सिर्फ बौद्धिक स्तर पर बल्कि मानसिक रूप से भी खुद को तैयार करना पड़ता है।
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग को अक्सर एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग भी कहा जाता है। यह ब्रांच विमानों, उपग्रहों, मिसाइलों और अंतरिक्ष यानों के डिजाइन और निर्माण से जुड़ी होती है। इस क्षेत्र में जरा सी चूक भी बड़े हादसे का कारण बन सकती है, इसलिए यहां पढ़ाई और काम दोनों में बेहद बारीकी और परिशुद्धता की जरूरत होती है।
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग क्यों मानी जाती है कठिन
इस ब्रांच के सिलेबस में भौतिकी, गणित, थर्मोडायनामिक्स, फ्लुइड मैकेनिक्स, मटीरियल साइंस, कंप्यूटर साइंस और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे विषय शामिल होते हैं। इन सभी को समझना और व्यावहारिक रूप से लागू करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। यही वजह है कि इसे इंजीनियरिंग की सबसे कठिन ब्रांचों में गिना जाता है।
छोटी गलती नहीं होती माफ
एयरोस्पेस इंजीनियरों का काम काफी संवेदनशील होता है। उन्हें ऐसे यंत्रों पर काम करना होता है जो अत्यधिक तापमान, दबाव और गुरुत्वाकर्षण के बदलाव जैसे कठोर वातावरण में काम करते हैं। ऐसे में एक छोटी सी गलती गंभीर परिणाम ला सकती है।
दीर्घकालिक प्रशिक्षण और पढ़ाई जरूरी
इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए बीटेक के बाद मास्टर्स या पीएचडी की आवश्यकता हो सकती है। साथ ही इंटर्नशिप, रिसर्च प्रोजेक्ट और प्रयोगशाला में काम करने का अनुभव बेहद अहम होता है।
मल्टीडिसिप्लिनरी ज्ञान की मांग
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एक साथ कई इंजीनियरिंग क्षेत्रों का ज्ञान जरूरी होता है। इसमें मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर साइंस के सिद्धांतों को मिलाकर काम करना होता है। यह विशेषता इस ब्रांच को और भी जटिल बना देती है।
एयरोस्पेस इंजीनियर की कमाई और करियर स्कोप
इस कोर्स को पूरा करने के बाद भारत और विदेश दोनों में करियर के कई अवसर उपलब्ध होते हैं। भारत में ISRO, DRDO, HAL, और प्राइवेट कंपनियों जैसे महिंद्रा एयरोस्पेस या टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स में नौकरी मिल सकती है। वहीं विदेशों में बोइंग, एयरबस, नासा जैसे संगठनों में भी अवसर मिलते हैं।
प्रारंभिक सैलरी भारत में 6 से 15 लाख सालाना के बीच हो सकती है, जबकि अमेरिका, जर्मनी और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में यह सैलरी 80 लाख से 1 करोड़ तक पहुंच सकती है।
एयरोस्पेस इंजीनियर बनने के लिए जरूरी योग्यता
इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए 12वीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स (PCM) विषयों के साथ कम से कम 75 प्रतिशत अंक जरूरी होते हैं। इसके अलावा JEE Main और Advanced जैसे एंट्रेंस एग्जाम में अच्छा स्कोर करना अनिवार्य होता है। IITs, NITs और BITS Pilani जैसे संस्थानों में इस ब्रांच की पढ़ाई होती है।
जरूरी स्किल्स और अनुभव
गणितीय समझ, प्रोग्रामिंग ज्ञान, प्रॉब्लम-सॉल्विंग एबिलिटी और रिसर्च स्किल्स इस फील्ड में बेहद अहम हैं। साथ ही इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट्स के जरिए व्यावहारिक अनुभव हासिल करना जरूरी होता है।
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग निश्चित तौर पर कठिन है, लेकिन जो छात्र इस चुनौती को स्वीकार करते हैं, उन्हें न सिर्फ शानदार करियर मिलता है बल्कि करोड़ों की सैलरी तक पहुंचने की संभावना भी बनती है। अगर आप विज्ञान और तकनीक में रुचि रखते हैं और अंतरिक्ष या एविएशन क्षेत्र में कुछ बड़ा करना चाहते हैं, तो यह ब्रांच आपके लिए सुनहरा मौका साबित हो सकती है।