जम्मू-कश्मीर के सुरम्य पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला इतना भयावह था कि शब्द भी उसकी पीड़ा को बयां करने में असमर्थ हैं। शुक्रवार को हुए इस नृशंस हमले में 27 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई, जिनमें अधिकतर पर्यटक थे। आतंकवादियों ने लोगों को उनके परिवार वालों के सामने ही मौत के घाट उतारा, जिससे हर आंख में खून जमा देने वाली कहानियां छुपी हैं।
इन्हीं दिल दहला देने वाली कहानियों में एक नाम है – कर्नाटक के भारत भूषण का। वह अपनी पत्नी सुजाता और तीन वर्षीय बेटे के साथ छुट्टियां मनाने बेंगलुरु से कश्मीर आए थे। पहलगाम की हरी-भरी वादियों में भारत अपने बेटे को घास पर दौड़ता देख रहे थे, पत्नी के साथ जीवन के खूबसूरत पल बिता रहे थे, तभी आतंक की एक गोली ने इस शांत क्षण को हमेशा के लिए खत्म कर दिया।
आतंकवादियों ने भारत को बेहद नजदीक से गोली मारी, वो भी उनके बेटे और पत्नी के सामने। भारत की मौके पर ही मौत हो गई। भय और सदमे से कांपती सुजाता किसी तरह अपने बेटे को लेकर वहां से भागीं। तीन साल का मासूम बच्चा अपनी मां से बस इतना कह सका – “मम्मी, पापा के सिर से लाल रंग निकल रहा है।”
एक मां का दर्द, जो कभी नहीं मिटेगा
भारत की पत्नी सुजाता पेशे से डॉक्टर हैं। इस हादसे ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया है। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए सुजाता की मां विमला ने बताया कि गोलीबारी के बाद किसी तरह सुजाता ने फोन कर उनसे संपर्क किया। उन्होंने कहा कि हमले के वक्त एक आतंकी उनके पास आया और नाम व धर्म पूछा। जब पता चला कि वे हिंदू हैं, तो भारत को निशाना बनाया गया।
आतंकियों ने केवल पुरुषों को गोली मारी, महिलाओं और बच्चों को छोड़ दिया गया – लेकिन जिंदा रहने का ये ‘तोहफा’ सुजाता के लिए मौत से बदतर बन गया।
भारत भूषण बेंगलुरु के भद्रप्पा लेआउट में एक डायग्नोस्टिक सेंटर चलाते थे। वे कर्नाटक के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष केबी कोलीवाड और विधायक प्रकाश कोलीवाड के पारिवारिक मित्र भी थे।
इस हमले में भारत अकेले नहीं थे। कुल 27 परिवारों के सपने, खुशियां और जीवन के मायने छिन गए। हर एक कहानी गवाही दे रही है कि आतंकवाद सिर्फ जान नहीं लेता – वह पीढ़ियों तक जख्म छोड़ता है।
देश आज एक बार फिर सवाल पूछ रहा है – कब तक?
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