अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियां हमेशा से वैश्विक बाजारों और व्यापारिक संबंधों के केंद्र में रही हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान व्यापार संतुलन को सुधारने और घरेलू औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कदम उठाए। इनमें से सबसे चर्चित कदम इस्पात और एल्युमीनियम आयात पर लगाए गए भारी शुल्क रहे, जिनका असर न केवल अमेरिकी बाजार पर बल्कि वैश्विक व्यापार पर भी देखने को मिला।
फरवरी में दिए गए निर्देशों के आधार पर, ट्रंप ने वैश्विक व्यापार को बाधित करने और पुनर्निर्धारित करने के लिए इस नीति को लागू किया। उनकी इस नीति के तहत, अमेरिका में आयातित धातुओं पर 25% तक की बढ़ोतरी की गई। इससे अमेरिकी उद्योगों और रोजगार को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई थी, लेकिन इसके दूरगामी प्रभावों पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आईं।
शुल्क नीति और वैश्विक बाजार पर प्रभाव

1. शुल्क वृद्धि और अमेरिकी शेयर बाजार: ट्रंप द्वारा घोषित नई शुल्क दरों से अमेरिकी शेयर बाजार में अस्थिरता देखी गई। एसएंडपी 500 शेयर सूचकांक में आठ प्रतिशत की गिरावट ने यह संकेत दिया कि बाजार इन नीतियों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं था। हालांकि, ट्रंप का मानना था कि उच्च शुल्क दरें अमेरिकी कारखानों को वापस लाने और स्थानीय उद्योगों को पुनर्जीवित करने में अधिक प्रभावी होंगी।
2. इस्पात और एल्युमीनियम उद्योग पर असर: इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित इस्पात और एल्युमीनियम उद्योग रहे। अमेरिका में इन उत्पादों का उत्पादन बढ़ा, लेकिन दूसरी ओर, इनपुट लागत बढ़ने से विनिर्माण क्षेत्र को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कई अमेरिकी कंपनियों को महंगे इनपुट के कारण अपनी लागत बढ़ानी पड़ी, जिससे उत्पादों के मूल्य भी बढ़े।
3. अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधों में बदलाव: ट्रंप प्रशासन की नीति के चलते कनाडा, मैक्सिको और चीन पर अलग-अलग शुल्क लगाए गए। इससे कई व्यापारिक सहयोगियों के साथ तनाव बढ़ा, और कई देशों ने अमेरिका के खिलाफ जवाबी कर लगाने की योजना बनाई। उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ, ब्राजील और दक्षिण कोरिया ने अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त कर लगाने की घोषणा की।
अमेरिकी रोजगार और निवेश पर प्रभाव
ट्रंप प्रशासन का तर्क था कि यह नीति अमेरिकी उद्योगों में निवेश को बढ़ावा देगी और नए रोजगार उत्पन्न करेगी। उनका कहना था कि जैसे-जैसे शुल्क बढ़ेंगे, कंपनियां अमेरिका में ही निर्माण करने के लिए मजबूर होंगी। इस विचारधारा के तहत, उन्होंने कहा कि “सबसे बड़ी जीत यह होगी कि वे हमारे देश में आएं और नौकरियां पैदा करें। यह शुल्क से भी बड़ी जीत है, लेकिन शुल्क से इस देश को बहुत सारा पैसा मिलने वाला है।”
हालांकि, व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो कई कंपनियों ने इसके विपरीत प्रतिक्रिया दी। उत्पादन लागत बढ़ने से कई कंपनियों को अपने कर्मचारियों की संख्या कम करनी पड़ी, जबकि कुछ कंपनियों ने विदेशी बाजारों की ओर रुख किया। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ी।
व्यापार युद्ध: एक रणनीतिक दांव
ट्रंप की व्यापार नीति को व्यापार युद्ध के रूप में देखा गया, जिसमें अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों के बीच टकराव की स्थिति बनी। उन्होंने चीन के साथ व्यापार युद्ध को औपचारिक रूप से शुरू किया और वहां से आयातित कई उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाए। बदले में, चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी कर लगाने का ऐलान किया। यह व्यापारिक टकराव वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ और निवेशकों में असमंजस की स्थिति बनी रही।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस नीति से अमेरिकी व्यापार संतुलन में सुधार की कुछ संभावनाएं तो थीं, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टि से यह नीति विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सिद्धांतों से मेल नहीं खाती थी। इससे अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के बीच व्यापारिक असहमति और बढ़ी।

नीति का दीर्घकालिक प्रभाव
ट्रंप प्रशासन की यह नीति कई मायनों में उनके पहले कार्यकाल की अपूर्ण नीतियों का विस्तार थी। इस नीति के तहत शुल्क दरों में बढ़ोतरी की गई, लेकिन संघीय सरकार द्वारा एकत्र किए गए राजस्व से मुद्रास्फीति दबावों को महत्वपूर्ण रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सका। इसके अलावा, 2018 में लागू किए गए शुल्क के बाद दी गई छूटों को हटा दिए जाने से अमेरिकी व्यापार पर दबाव बढ़ा।
ट्रंप द्वारा कनाडा से आयातित इस्पात और एल्युमीनियम पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाने की धमकी भी दी गई थी, लेकिन ओंटारियो प्रांत द्वारा अमेरिका को बेची जाने वाली बिजली पर अधिभार लगाने की योजना को स्थगित करने के बाद यह शुल्क 25 प्रतिशत पर ही बनाए रखा गया। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि व्यापारिक नीतियों का प्रभाव दोनों ओर से पड़ता है और व्यापारिक निर्णयों में सतत समायोजन की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष: नीति की सफलता या असफलता?
ट्रंप की व्यापार नीति और शुल्क रणनीति को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं रही हैं। कुछ लोगों का मानना था कि इस नीति से अमेरिका को अपनी औद्योगिक ताकत बढ़ाने में मदद मिलेगी, जबकि अन्य लोगों का तर्क था कि इससे वैश्विक व्यापार प्रणाली में अस्थिरता बढ़ेगी।
हालांकि, इस नीति के तहत अमेरिका में इस्पात और एल्युमीनियम उद्योग को कुछ राहत जरूर मिली, लेकिन इसकी कीमत अन्य उद्योगों को चुकानी पड़ी। उच्च उत्पादन लागत, बाजार में अस्थिरता और व्यापारिक संबंधों में तनाव जैसे कारक इस नीति की आलोचना का कारण बने।
इस नीति का वास्तविक प्रभाव तब स्पष्ट होगा जब हम दीर्घकालिक दृष्टिकोण से इसके परिणामों का विश्लेषण करेंगे। अमेरिका में उद्योगों की स्थिति, रोजगार में वृद्धि, और व्यापारिक संबंधों का मूल्यांकन करने के बाद ही यह कहा जा सकता है कि ट्रंप की यह नीति सफल रही या नहीं।
अधिक जानकारी और ताज़ा ख़बरों के लिए जुड़े रहें hindustanuday.com के साथ।