दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा, CAG रिपोर्ट में खुलासा
दिल्ली की शराब नीति को लेकर एक नई रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें दिल्ली सरकार को भारी नुकसान होने का खुलासा किया गया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार की 2021-2022 की आबकारी नीति के कारण राज्य को करीब ₹2000 करोड़ का नुकसान हुआ है। दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा एक गंभीर मुद्दा बन गया है, जिसे लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में व्यापक चर्चा हो रही है।
दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा: क्या कहती है रिपोर्ट?
CAG की रिपोर्ट में यह साफ तौर पर उल्लेख किया गया है कि दिल्ली सरकार की शराब नीति में कई खामियां थीं। इन खामियों के चलते न केवल राजस्व का नुकसान हुआ, बल्कि नीतिगत विफलताएं भी उजागर हुईं। दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा का मुख्य कारण नीतिगत ढांचे की कमजोरियाँ और नीति के क्रियान्वयन में त्रुटियाँ मानी जा रही हैं।
इस रिपोर्ट में विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया गया है कि नई नीति के तहत लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं, जिससे सरकार को भारी राजस्व का नुकसान हुआ। विशेषज्ञों की राय में, नीति के सही क्रियान्वयन में विफलता ने न केवल सरकारी खजाने को प्रभावित किया बल्कि आम जनता पर भी इसका असर पड़ा।
लाइसेंस प्रक्रिया में उल्लंघन और CAG की सिफारिशें
CAG की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि शराब की दुकानों के लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में नियमों का उल्लंघन हुआ था। इन उल्लंघनों के कारण सरकार को राजस्व में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा होने के पीछे एक अन्य कारण यह भी था कि विशेषज्ञ समिति द्वारा दिए गए सुझावों को नजरअंदाज किया गया था।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समिति की सिफारिशों को समय रहते अमल में लाया जाता, तो इस तरह का नुकसान टाला जा सकता था। हालांकि, उस समय के आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने इन सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया, जिसका नतीजा आज सामने आ रहा है।
941 करोड़ का राजस्व नुकसान
CAG की रिपोर्ट में बताया गया है कि कथित शराब घोटाले के कारण दिल्ली सरकार को ₹941 करोड़ का सीधा राजस्व नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शराब की दुकानों को उन क्षेत्रों में खोलने की अनुमति दी गई, जहां इसके लिए कोई उपयुक्त लाइसेंस नहीं था।
दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा के पीछे का एक मुख्य कारण इन क्षेत्रों में समय पर लाइसेंस प्राप्त न करना था, जिससे सरकार को बड़ा राजस्व नुकसान हुआ। रिपोर्ट के अनुसार, शराब नीति को वापस लेने और दोबारा निविदा जारी करने में देरी के कारण सरकार को लगभग ₹890 करोड़ का अतिरिक्त नुकसान हुआ।
कोविड-19 के दौरान छूट और राजस्व का नुकसान
दिल्ली सरकार की शराब नीति के तहत कोविड-19 महामारी के दौरान शराब लाइसेंसधारकों को अनियमित छूट दी गई थी। इससे सरकार को ₹144 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व नुकसान हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह छूट बिना किसी ठोस आधार के दी गई थी और इसका सीधा असर सरकारी खजाने पर पड़ा।
दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा के पीछे के कारणों में से एक यह भी था कि लॉकडाउन के दौरान शराब दुकानों को खोले जाने की अनुमति नहीं मिली, जिससे लाइसेंसधारकों ने अदालत में जाकर छूट प्राप्त कर ली। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि सरकार को हर महीने करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।
राजनीतिक विवाद और आप सरकार पर आरोप
CAG की रिपोर्ट आने के बाद से दिल्ली की आप सरकार पर राजनीतिक हमले तेज हो गए हैं। भाजपा और अन्य विपक्षी दल इस रिपोर्ट को लेकर आप सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उनका कहना है कि दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा सरकार की नीतिगत विफलताओं का परिणाम है, और इसे लेकर जांच की जानी चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और अन्य नेताओं के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने शराब नीति के क्रियान्वयन में नियमों का उल्लंघन किया और सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि आबकारी विभाग ने समय पर कार्रवाई नहीं की, जिससे कई गलतियां हुईं।
निष्कर्ष
दिल्ली शराब नीति से ₹2000 करोड़ का घाटा सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है। CAG की रिपोर्ट में उजागर हुई खामियों ने न केवल दिल्ली सरकार की नीति को कटघरे में खड़ा किया है, बल्कि जनता और विपक्षी दलों के बीच भी इसे लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है और किस तरह से नीतिगत सुधार करती है ताकि भविष्य में ऐसे नुकसान से बचा जा सके।
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