🕒 Published 6 months ago (8:41 AM)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 16 फरवरी 2025 को हुई बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। इसके तहत, ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के रूप में नियुक्त किया गया है। उनकी नियुक्ति से चुनाव आयोग में एक नया अध्याय शुरू हुआ है, और उनका कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक रहेगा।
यह निर्णय उस समय लिया गया है जब मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का कार्यकाल समाप्त होने वाला है। राजीव कुमार 18 फरवरी 2025 को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं, और उनके बाद ज्ञानेश कुमार इस अहम पद को संभालेंगे। इसके साथ ही, चुनाव आयोग में एक और महत्वपूर्ण नियुक्ति भी की गई है। विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त के रूप में चुना गया है, जो पहले हरियाणा के मुख्य सचिव और 1989 बैच के आईएएस अधिकारी थे। सुखबीर सिंह संधू, जो पहले से ही चुनाव आयुक्त हैं, अपने पद पर बने रहेंगे।
यह नियुक्ति प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में गृह मंत्री अमित शाह और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति में की गई थी। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि चुनाव आयोग की सिफारिशों के आधार पर नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जाएगी। हालांकि, इस नियुक्ति से संबंधित प्रक्रिया को लेकर कुछ विवाद भी उत्पन्न हुआ है, जिसे हम इस लेख में विस्तार से समझेंगे।
राजीव कुमार का कार्यकाल और उनकी रिटायरमेंट
राजीव कुमार का कार्यकाल चुनाव आयोग में एक महत्वपूर्ण समय था, जिसमें उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले किए और चुनाव प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए कई कदम उठाए। उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण चुनाव हुए, और चुनाव आयोग ने अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखते हुए चुनावों के दौरान होने वाली समस्याओं का हल खोजने की दिशा में प्रयास किए। अब, जब उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है, ज्ञानेश कुमार इस भूमिका को संभालने के लिए तैयार हैं।
राजीव कुमार की रिटायरमेंट के बाद, भारत का लोकतंत्र एक नए दौर में प्रवेश करेगा, क्योंकि चुनाव आयोग की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है। इसका जिम्मा अब ज्ञानेश कुमार के कंधों पर होगा, जिनके पास प्रशासनिक अनुभव है और जो चुनाव आयोग की गतिविधियों को सही दिशा में ले जाने के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं।

ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति: उम्मीदें और जिम्मेदारियां
ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों और समाज के विभिन्न हिस्सों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नियुक्ति को लोकतांत्रिक प्रक्रिया और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को बनाए रखने के रूप में महत्व दिया है।
ज्ञानेश कुमार को लेकर यह माना जा रहा है कि उनका कार्यकाल चुनाव आयोग के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा, खासकर उन चुनौतियों का सामना करते हुए, जो आगामी लोकसभा चुनावों और राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान सामने आ सकती हैं। उनका चुनाव आयोग के संचालन में निष्पक्षता और स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए कदम उठाने की संभावना है।
विवेक जोशी और सुखबीर सिंह संधू की नियुक्ति
चुनाव आयोग के अन्य महत्वपूर्ण सदस्यों की नियुक्ति भी इस बैठक में की गई। विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त के रूप में चुना गया है, जो एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अच्छे अनुभव के साथ चुनाव आयोग में शामिल होंगे। विवेक जोशी की नियुक्ति से चुनाव आयोग को और अधिक सशक्त बनाने की उम्मीद जताई जा रही है। उनके पास प्रशासनिक दक्षता और न्यायपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता है, जो आगामी चुनावों के दौरान निर्णायक साबित हो सकती है।
सुखबीर सिंह संधू की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति पहले से ही हो चुकी थी, और वे अपने पद पर बने रहेंगे। उनका चुनाव आयोग के संचालन में महत्वपूर्ण योगदान रहेगा, और उनकी उपस्थिति से आयोग को और अधिक अनुभव मिलेगा।
राहुल गांधी और कांग्रेस का विरोध: संविधान के उल्लंघन का आरोप
इस बैठक और नई नियुक्तियों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक विवाद सामने आया है। कांग्रेस पार्टी ने नए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति पर आपत्ति जताई। कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने आरोप लगाया कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है। उनका कहना था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बनी समिति में CJI को बाहर करके सरकार ने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर किया है।

कांग्रेस ने यह भी कहा कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट की याचिका के फैसले तक इंतजार करना चाहिए था, ताकि चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर कोई कानूनी विवाद न हो। कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में डिसेंट नोट जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि यह बैठक सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले पर सुनवाई से पहले नहीं होनी चाहिए थी।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और संविधानिक सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च 2023 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक पैनल का गठन किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, और CJI शामिल होंगे। इस फैसले के बाद, सरकार ने नए बिल का मसौदा तैयार किया, जिसमें CJI को समिति से बाहर किया गया, और तीन सदस्यीय पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्षी दल का नेता, और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया।
यह कदम कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के विरोध का कारण बना, क्योंकि उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को खत्म करने के रूप में देखा। इस मामले में 19 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है, जो इस विवाद पर अंतिम निर्णय देगा।
क्या है चुनाव आयोग की संरचना और इसके कार्य
चुनाव आयोग का गठन भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह देश में चुनाव प्रक्रिया को सुव्यवस्थित, निष्पक्ष, और पारदर्शी बनाए रखे। चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों का समावेश हो सकता है, लेकिन संविधान में इनकी संख्या को लेकर कोई विशेष प्रावधान नहीं है।
भारत में चुनाव आयोग की संरचना में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं। 1989 में, जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में चुनाव आयोग को एक मल्टी-मेंबर बॉडी के रूप में बदलने का निर्णय लिया गया, तो चुनाव आयोग में दो और चुनाव आयुक्तों को शामिल किया गया था। यह कदम मुख्य चुनाव आयुक्त के अधिकारों को साझा करने के लिए लिया गया था, ताकि चुनाव आयोग में सभी निर्णय सामूहिक रूप से लिए जा सकें।
आखिरकार, क्या होगा चुनाव आयोग का भविष्य?
भारत में चुनाव आयोग की भूमिका लोकतंत्र की मूल धाराओं में से एक है। यह न केवल चुनावों की प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाता है, बल्कि यह देश की राजनीतिक स्थिरता और चुनावों की निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। अब, जब ज्ञानेश कुमार मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यभार संभालने जा रहे हैं, तो उनके कार्यकाल के दौरान चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखना और मजबूत करना बेहद महत्वपूर्ण होगा।
चुनाव आयोग का भविष्य अब इस बात पर निर्भर करेगा कि नए आयुक्त किस प्रकार से इस संवेदनशील कार्यक्षेत्र को संभालते हैं, और क्या वे राजनीतिक दबावों से मुक्त रहते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सही दिशा में आगे बढ़ाते हैं।
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