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चीन और पाकिस्तान का ‘ऑल वेदर’ गठबंधन भारत के खिलाफ, पूर्व विदेश सचिव का बड़ा दावा

नई दिल्ली: भारत के पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने एक अहम बयान देते हुए कहा है कि चीन और पाकिस्तान के बीच एक ‘सदाबहार गठबंधन’ (All-Weather Alliance) आकार ले रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत की प्रगति को रोकना है। श्रृंगला ने बताया कि चीन अब पाकिस्तान को न केवल सैन्य मदद दे रहा है, बल्कि खुफिया, कूटनीतिक और तकनीकी स्तर पर भी सहयोग कर रहा है। उन्होंने इसे भारत के लिए एक नई रणनीतिक चुनौती बताया।

तीन मोर्चों पर मदद कर रहा चीन

पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि चीन पाकिस्तान की सहायता केवल हथियारों तक सीमित नहीं रख रहा, बल्कि वह तीन मोर्चों — रक्षा, खुफिया और कूटनीति — पर सक्रिय सहयोग कर रहा है। उन्होंने बताया कि मई 2025 में हुए “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान यह साफ देखा गया कि पाकिस्तान ने कई चीनी सैन्य उपकरणों का उपयोग किया। इस घटना ने दोनों देशों के बीच गहराते सामरिक रिश्तों को उजागर किया। श्रृंगला ने इसे भारत की सुरक्षा नीति के लिए एक बड़ा संकेत बताया।

पुणे इंटरनेशनल सेंटर में कही बात

हर्षवर्धन श्रृंगला ने यह बयान पुणे इंटरनेशनल सेंटर (PIC) द्वारा आयोजित एक संवाद कार्यक्रम के दौरान दिया, जिसका संचालन चीन में भारत के पूर्व राजदूत गौतम बंबावाले ने किया। इस चर्चा में भारत की विदेश नीति, बदलते भू-राजनीतिक समीकरण और चीन-पाकिस्तान की रणनीतिक साझेदारी जैसे विषयों पर विस्तार से मंथन हुआ। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि चीन और पाकिस्तान का यह गठबंधन भारत के विकास मार्ग में अड़चन डालने के लिए बनाया जा रहा है।

भारत की विदेश नीति पर चर्चा

पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि भारत की विदेश नीति आदर्शवाद और यथार्थवाद के बीच संतुलन बनाए हुए है। उन्होंने कहा, “भारत की कूटनीति रणनीतिक स्वायत्तता, विकास और समावेशी वैश्विक दृष्टिकोण पर आधारित है।” श्रृंगला, जो जी20 प्रेसीडेंसी के दौरान भारत के मुख्य समन्वयक भी रहे हैं, ने बताया कि भारत आज वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में उभर रहा है और उसे किसी के प्रभाव में आने की जरूरत नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारत की विदेश नीति का मूल उद्देश्य शांति, स्थिरता और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है, लेकिन जब कोई देश हमारी सीमाओं या रणनीतिक हितों को चुनौती देता है, तो भारत को उसके अनुरूप जवाब देना चाहिए।

तकनीक और रक्षा का नया दौर

कार्यक्रम में श्रृंगला ने बताया कि आधुनिक युद्ध की प्रकृति तेजी से बदल रही है। उन्होंने कहा कि भविष्य के संघर्षों में हथियारों से ज्यादा महत्व तकनीक, ड्रोन, साइबर सिस्टम और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को इस दिशा में नवाचार और अनुसंधान को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि वह किसी भी तरह के हाइब्रिड युद्ध का प्रभावी जवाब दे सके।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत को रणनीतिक निवारण (Strategic Deterrence) और कुशल कूटनीति (Skilled Diplomacy) के जरिए अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करना होगा।

चीन-पाकिस्तान साझेदारी पर चेतावनी

श्रृंगला ने चीन-पाकिस्तान गठबंधन को लेकर आगाह किया कि यह साझेदारी केवल सैन्य स्तर पर नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक उद्देश्यों के तहत आगे बढ़ाई जा रही है। उन्होंने कहा कि चीन का मकसद पाकिस्तान को भारत के खिलाफ एक स्थायी मोर्चे के रूप में इस्तेमाल करना है। यह गठबंधन रक्षा सौदों से आगे बढ़कर आर्थिक और खुफिया सहयोग तक पहुंच गया है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।

अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों पर टिप्पणी

पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ अपने रिश्ते सुधारने की कोशिश की। फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने ट्रंप 2.0 प्रशासन के साथ रणनीतिक संवाद शुरू किया और वाशिंगटन में अपनी स्थिति को मजबूत किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की नीति अल्पकालिक सामरिक लाभ पर केंद्रित है, जबकि भारत दीर्घकालिक और संस्थागत दृष्टिकोण अपनाता है।

‘पड़ोसी पहले’ नीति पर जोर

श्रृंगला ने कहा कि भारत को अपनी विदेश नीति में “पड़ोसी पहले” दृष्टिकोण को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ मजबूत साझेदारी की जरूरत पर बल दिया। उनका कहना था कि भारत को ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनकर उभरना चाहिए और विकासशील देशों के हितों की रक्षा करनी चाहिए।

रणनीतिक आत्मनिर्भरता ही जवाब

पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि भारत को इस बदलते भू-राजनीतिक माहौल में अपनी रणनीतिक आत्मनिर्भरता को मजबूत बनाना होगा। उन्होंने कहा, “चीन और पाकिस्तान का गठबंधन हमें सावधान करता है, लेकिन भारत के पास अपनी क्षमताओं, नवाचार और कूटनीतिक शक्ति के जरिए इसका संतुलित जवाब देने की पूरी क्षमता है।”

उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को रक्षा निर्माण, साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रणनीतिक साझेदारियों में आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना चाहिए, ताकि भविष्य की किसी भी चुनौती का सामना मजबूती से किया जा सके।

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