Home » Blogs » Chhath Puja 2025 Usha Arghya Time: उगते सूर्य को कब दें अर्घ्य, जानिए सही समय और पूजा विधि

Chhath Puja 2025 Usha Arghya Time: उगते सूर्य को कब दें अर्घ्य, जानिए सही समय और पूजा विधि

छठ पूजा 2025 का समापन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ 28 अक्टूबर को होगा। इस पवित्र पर्व के चौथे दिन व्रती उषाकाल में सूर्य देव की आराधना करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस पूजा को “उषा अर्घ्य” कहा जाता है और इसे अत्यंत शुभ और मोक्षदायक माना गया है। आइए जानते हैं इस वर्ष छठ पूजा के उषा अर्घ्य का सटीक समय, विधि, मंत्र और इससे जुड़े धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से।

छठ पूजा उषा अर्घ्य का समय 2025

इस वर्ष छठ पूजा का उषा अर्घ्य मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025 को प्रातः काल दिया जाएगा। पूजा का शुभ समय सुबह 6 बजे से शुरू होकर 6 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इस दिन सूर्य उदय का समय 6:30 बजे है। व्रती प्रातः कालीन बेला में जलाशय या नदी किनारे खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे और सूर्य देव से अपने परिवार की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करेंगे।

प्रमुख शहरों में उषा अर्घ्य का समय

पटना – सुबह 5:55 मिनट
दिल्ली – सुबह 6:30 मिनट
नोएडा – सुबह 6:30 मिनट
मुंबई – सुबह 6:37 मिनट
लखनऊ – सुबह 6:13 मिनट
गोरखपुर – सुबह 6:03 मिनट
आगरा – सुबह 6:25 मिनट
गाजियाबाद – सुबह 6:29 मिनट
मेरठ – सुबह 6:28 मिनट
रांची – सुबह 5:51 मिनट
प्रयागराज – सुबह 6:08 मिनट
देवघर – सुबह 5:47 मिनट

उषा अर्घ्य देने की विधि

उषा अर्घ्य की तैयारी सूर्योदय से पहले शुरू की जाती है। व्रती स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और परिवार सहित घाट या नदी किनारे पहुंचते हैं। बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना, दीया, अगरबत्ती, धूप, हल्दी और प्रसाद रखा जाता है। सूर्य के उदय होते ही व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं और “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हैं। इस समय छठ गीत गाने की परंपरा भी निभाई जाती है। अर्घ्य देने के बाद व्रती सूर्य और छठी मइया से संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

छठ पूजा अर्घ्य मंत्र

ॐ सूर्याय नमः
इस मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करने से मन की शुद्धि होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

सूर्यदेव की पत्नी प्रत्यूषा की पूजा का महत्व

छठ पर्व के तीसरे दिन सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने की परंपरा भी निभाई जाती है। इस दौरान सूर्यदेव की पत्नी देवी प्रत्यूषा की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्यूषा “सांध्यकाल” की देवी हैं और सूर्य के अस्त होने के समय उनकी शक्ति का प्रभाव बढ़ता है। ऐसा माना जाता है कि उनकी आराधना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। सूर्यास्त के समय की गई यह पूजा सृष्टि के सभी प्राणियों को ऊर्जा और संतुलन प्रदान करती है।

सूर्य भगवान की आरती

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे।
तुम हो देव महान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

ऊषाकाल में जब तुम उदयाचल आते,
सब तब दर्शन पाते, फैलाते उजियारा।
जागता तब जग सारा, करे सब तब गुणगान।।
ॐ जय सूर्य भगवान।।

देव, दनुज, नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते।
आदित्य हृदय जपते, मंगलकारी यह स्तोत्र।
दे नव जीवनदान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

केले के पत्तों का महत्व

छठ पूजा में प्रसाद का विशेष महत्व होता है और केले के पत्तों पर प्रसाद परोसना शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि केले के वृक्ष में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का निवास होता है। इसलिए पूजा में केले के पत्तों का उपयोग समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है। खरना प्रसाद, ठेकुआ और फल आदि को इन्हीं पत्तों पर परोसा जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य का आगमन होता है।

छठ पर्व का समापन

चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व 28 अक्टूबर की सुबह उषा अर्घ्य के साथ पूर्ण होता है। इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद व्रती पारण करते हैं यानी अपना व्रत समाप्त करते हैं। पारण के बाद घर में प्रसाद का वितरण किया जाता है और लोग एक-दूसरे को पर्व की शुभकामनाएं देते हैं।

छठ पूजा न केवल सूर्य उपासना का पर्व है बल्कि यह आस्था, अनुशासन और पर्यावरण के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है। इस पर्व में जल, वायु, अग्नि, सूर्य और पृथ्वी के पंचतत्वों की महिमा का बखान किया जाता है। उषा अर्घ्य के साथ जब सूर्य की पहली किरण जल पर पड़ती है, तब माना जाता है कि हर भक्त का जीवन नई ऊर्जा और सकारात्मकता से भर जाता है।

अगर खबर पसंद आई हो तो इसे शेयर ज़रूर करें!
0Shares
Scroll to Top