बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के टिकट बंटवारे ने कई चौंकाने वाले मोड़ ला दिए हैं। भाजपा और जदयू दोनों दलों में नए समीकरणों ने कई पुराने और प्रभावशाली नेताओं को हाशिए पर ला खड़ा किया है। सबसे बड़ी चर्चा का विषय बने हैं भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह और जदयू के मनीष वर्मा। दोनों ही नेता एक समय मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार माने जाते थे, लेकिन इस बार चुनावी दौड़ में उन्हें जगह नहीं मिली।
राजेंद्र सिंह को नहीं मिला टिकट, कार्यकर्ताओं में निराशा
राजनीतिक गलियारों में यह निर्णय कई सवालों को जन्म दे रहा है। भाजपा के कद्दावर नेता राजेंद्र सिंह, जो लंबे समय से संगठन का मजबूत चेहरा रहे हैं, को टिकट नहीं मिलना पार्टी के अंदर और बाहर चर्चा का विषय बन गया है।
राजेंद्र सिंह को हमेशा संगठनात्मक क्षमताओं, कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय और रणनीतिक निर्णयों में अहम माना गया है। उनके नाम पर कई बार मुख्यमंत्री पद के लिए चर्चाएं होती रहीं, खासकर जब पार्टी राज्य में अपना नेतृत्व बदलने के संकेत देती थी।
इस बार उनकी उम्मीदवारी को लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन अंतिम सूची में उनका नाम नहीं होने से उनके समर्थकों को गहरा धक्का लगा है।
भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी अब “युवा नेतृत्व” और “सामाजिक संतुलन” को प्राथमिकता दे रही है। ऐसे में कुछ पुराने नेताओं को किनारे किया जाना रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।
राजेंद्र सिंह की चुप्पी और भविष्य की रणनीति
टिकट नहीं मिलने पर राजेंद्र सिंह ने अब तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि वे इस निर्णय से “आहत” हैं। पार्टी नेतृत्व के साथ उनकी बातचीत की अटकलें तेज हैं। उनके करीबी मानते हैं कि आने वाले समय में वे अपनी राजनीतिक दिशा को लेकर कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।
उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं – क्या वे पार्टी में ही बने रहेंगे, या फिर कोई नया रास्ता अपनाएंगे।
मनीष वर्मा की टिकट कटौती से जदयू में भी हलचल
इसी तरह जदयू के मनीष वर्मा का नाम भी हमेशा पार्टी के भविष्य के चेहरे के तौर पर लिया जाता रहा है। नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले मनीष वर्मा, नीतिगत मामलों में पकड़ और प्रशासनिक अनुभव के कारण पार्टी के रणनीतिकारों में शामिल रहे हैं।
लेकिन 2025 के चुनाव में उनका टिकट कटना सभी को चौंका गया। यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब जदयू अंदरूनी तौर पर नेतृत्व के भविष्य को लेकर बदलाव की ओर बढ़ती दिख रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मनीष वर्मा को टिकट न देना, पार्टी की “पीढ़ी परिवर्तन” की योजना का हिस्सा हो सकता है।
जदयू में बदलते समीकरण
जदयू सूत्रों के मुताबिक, अब पार्टी नए सामाजिक समूहों और युवा चेहरों पर फोकस कर रही है। ऐसे में पुराने नेताओं को सीमित भूमिका दी जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ सीटों पर समीकरण बदलने की वजह से मनीष वर्मा की पकड़ कमजोर हुई है।
हालांकि, मनीष वर्मा ने भी अभी तक इस पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिससे चर्चाओं को और बल मिल रहा है।
विपक्ष का हमला और संगठनात्मक असंतोष की चर्चा
दोनों बड़े नेताओं को टिकट से वंचित किया जाना विपक्षी दलों के लिए मुद्दा बन गया है। आरजेडी और कांग्रेस ने इसे भाजपा और जदयू की “अंदरूनी खींचतान” और “संगठनात्मक अस्थिरता” बताया है।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि भाजपा और जदयू दोनों अपने पुराने और अनुभवी नेताओं को किनारे कर नई अस्थिरता की ओर बढ़ रही हैं। यह स्थिति आने वाले चुनावों में उनके लिए नुकसानदेह हो सकती है।
पार्टी का पक्ष: ‘सामान्य प्रक्रिया’
भाजपा और जदयू दोनों दलों के प्रवक्ताओं ने इस पर सफाई दी है कि यह पूरी तरह “सामान्य चयन प्रक्रिया” का हिस्सा है। पार्टी हर बार क्षेत्रीय संतुलन, जातीय समीकरण और जीत की संभावना को देखते हुए टिकट तय करती है।
उनका यह भी कहना है कि किसी भी एक नेता को टिकट न मिलने का मतलब यह नहीं कि उनकी उपयोगिता खत्म हो गई है। आने वाले समय में उन्हें संगठनात्मक या सरकार में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है।
क्या है आगे की राह?
अब सभी की निगाह इस पर है कि राजेंद्र सिंह और मनीष वर्मा अगले कदम के तौर पर क्या निर्णय लेते हैं। क्या वे पार्टी के फैसले को स्वीकार करेंगे या बगावती रुख अपनाएंगे? क्या कोई नया राजनीतिक विकल्प तलाशेंगे?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर ये दोनों नेता अलग राह चुनते हैं, तो इसका असर राज्य की चुनावी रणनीति पर गहरा हो सकता है।
बिहार की राजनीति में जहां नेतृत्व परिवर्तन और सामाजिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं, ऐसे में इन दोनों नेताओं की अगली चाल सियासी समीकरणों को बदल सकती है।
अगर खबर पसंद आई हो तो इसे शेयर ज़रूर करें!


