आज (23 सितंबर) रुपये ने डॉलर के मुकाबले अब तक का सबसे निचला स्तर छू लिया। सुबह के कारोबार में रुपया 88.49 तक गिर गया, जो दो हफ्ते पहले बने ऑल-टाइम लो 88.46 से भी नीचे चला गया। सुबह बाजार खुलते ही रुपया 10 पैसे टूटकर 88.41 प्रति डॉलर पर पहुंचा। सोमवार को यह 12 पैसे गिरकर 88.31 पर बंद हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि यह कमजोरी तब आई जब एशियाई बाजारों में डॉलर थोड़ा नरम हुआ था।
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गिरावट की वजह क्या है?
करेंसी एक्सपर्ट्स का कहना है कि रुपये पर दबाव की मुख्य वजह एशियाई मुद्राओं की कमजोरी और अमेरिकी डॉलर की मजबूती है। इसके साथ ही अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाना और H1B वीजा फीस को 1 लाख डॉलर करना रुपये के लिए दोहरी मार साबित हो रहा है।
2025 में अब तक 3.25% गिरा रुपया
साल की शुरुआत में यानी 1 जनवरी को रुपया 85.70 प्रति डॉलर पर था। अब यह 88.49 तक लुढ़क चुका है। यानी 2025 में अब तक रुपया 3.25% कमजोर हो चुका है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई नीतियों—खासकर भारतीय सामान पर टैरिफ बढ़ाने और IT सेक्टर को प्रभावित करने वाली वीजा पॉलिसी—का सीधा असर रुपये पर पड़ रहा है।
महंगाई पर असर
रुपये की गिरावट का सबसे बड़ा असर आयात (Import) पर होगा। विदेश से आने वाले सामान महंगे होंगे। जो छात्र विदेश में पढ़ाई करने जाते हैं, उनके लिए भी खर्च बढ़ जाएगा।
करंसी की कीमत कैसे तय होती है ?
जब डॉलर के मुकाबले रुपया गिरता है तो इसे Currency Depreciation कहते हैं। हर देश के पास विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Currency Reserve) होता है, जिसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के लिए किया जाता है। अगर रिजर्व बढ़ता है तो रुपया मजबूत होता है। यानी रुपये की कीमत फॉरेन रिजर्व और डॉलर की मांग-आपूर्ति पर निर्भर करती है। इसे Floating Rate System कहा जाता है।
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