एक व्यक्ति ने साल 1983 में सिर्फ़ 20 हज़ार रुपये में विंटेज कार खरीदी थी। करीब 9 साल बाद यानी 1992 में, उसी कार को उसने 21 लाख रुपये में बेच दिया। लेकिन समस्या तब खड़ी हुई जब उसने इस सौदे का ज़िक्र अपने आयकर रिटर्न में नहीं किया। मामला इतना बढ़ा कि अंततः यह बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंच गया।
विषयसूची
हाई कोर्ट का अहम फैसला
बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में इस मामले पर फैसला सुनाते हुए साफ़ कहा कि यह कार निजी संपत्ति नहीं मानी जा सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि बेची गई विंटेज कार पर कैपिटल गेन टैक्स (पूंजीगत लाभ कर) लागू होगा, क्योंकि इसके व्यक्तिगत उपयोग का कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया जा सका।
कोर्ट ने क्यों माना टैक्स योग्य?
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और जस्टिस संदीप मार्ने की खंडपीठ ने कहा कि—
-
केवल स्वामित्व रखने से कोई भी चल संपत्ति व्यक्तिगत प्रभाव (Personal Effect) नहीं बन जाती।
-
व्यक्तिगत संपत्ति मानने के लिए यह दिखाना ज़रूरी है कि वस्तु का नियमित रूप से व्यक्तिगत उपयोग हुआ है।
-
कार का केवल निजी उपयोग की क्षमता होना, टैक्स से छूट का आधार नहीं बन सकता।
आईटीएटी और विभाग की भूमिका
शख्स ने दावा किया कि कार उसकी निजी संपत्ति है और उस पर कोई टैक्स नहीं बनता। लेकिन मूल्यांकन अधिकारी ने यह तर्क खारिज कर दिया और करीब 20.8 लाख रुपये को उसकी कर योग्य आय में जोड़ दिया।
-
आयकर अपीलीय आयुक्त (CIT Appeals) ने आंशिक राहत दी।
-
मगर आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) ने इसे खारिज करते हुए कहा कि व्यक्तिगत उपयोग का कोई सबूत नहीं है।
-
अंततः मामला बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंचा, जहां टैक्स की देनदारी को बरकरार रखा गया।
वकील का पक्ष और अदालत की प्रतिक्रिया
करदाता के वकील ने दलील दी कि:
-
विभाग ने पहले कार को निजी संपत्ति माना था।
-
कार के रखरखाव का खर्च उसकी निजी निकासी में दिखाया गया।
-
कार का कोई व्यावसायिक उपयोग नहीं हुआ।
लेकिन अदालत ने इन तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा कि व्यक्तिगत संपत्ति के लिए ठोस सबूत ज़रूरी होते हैं, केवल दावे से छूट नहीं मिल सकती।
यह मामला बताता है कि किसी भी कीमती संपत्ति की खरीद-बिक्री का ब्यौरा टैक्स रिटर्न में सही-सही देना बेहद ज़रूरी है। वरना वर्षों बाद भी मामला अदालत तक खिंच सकता है और भारी टैक्स वसूल किया जा सकता है।
अगर खबर पसंद आई हो तो इसे शेयर ज़रूर करें!

