🕒 Published 1 month ago (9:08 PM)
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद को बड़ा झटका देते हुए उनके पतंजलि च्यवनप्राश के विज्ञापन पर अस्थायी रोक लगा दी है। यह आदेश डाबर इंडिया की याचिका पर दिया गया, जिसमें पतंजलि पर आरोप लगाया गया था कि वह अपने विज्ञापनों के जरिए डाबर के च्यवनप्राश को बदनाम कर रहा है और उपभोक्ताओं को गुमराह कर रहा है।
क्या है पूरा मामला?
डाबर इंडिया ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह दावा किया था कि पतंजलि आयुर्वेद अपने विज्ञापनों में डाबर च्यवनप्राश को “साधारण” कहकर प्रस्तुत कर रहा है और खुद को एकमात्र ‘आयुर्वेदिक ज्ञान’ वाला ब्रांड बताकर भ्रम फैला रहा है। डाबर ने यह भी बताया कि पतंजलि अपने उत्पाद को 51 जड़ी-बूटियों से बना हुआ बताता है, जबकि वास्तव में उसमें सिर्फ 47 जड़ी-बूटियाँ ही हैं। इस तरह के भ्रामक दावे ग्राहकों को धोखा देने वाले हैं।
Mercury होने का भी आरोप
डाबर ने यह भी गंभीर आरोप लगाया कि पतंजलि के च्यवनप्राश में पारा (Mercury) जैसे खतरनाक तत्व पाए गए हैं, जो बच्चों के लिए स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं। इसके साथ ही डाबर ने कहा कि पतंजलि यह दावा कर रहा है कि असली च्यवनप्राश वही बना सकते हैं जिन्हें वेदों और आयुर्वेद का वास्तविक ज्ञान हो। यह सीधा हमला डाबर जैसे मार्केट लीडर की साख पर है।
कोर्ट में किसने दी दलीलें?
- डाबर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने पैरवी की।
- पतंजलि की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव नायर और जयंत मेहता पेश हुए।
डाबर ने कोर्ट को यह भी बताया कि पतंजलि को पहले नोटिस दिए जाने के बावजूद उसने पिछले कुछ हफ्तों में 6,182 बार ऐसे भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किए।
कोर्ट ने क्या कहा?
दिल्ली हाईकोर्ट ने डाबर के तर्कों को मानते हुए पतंजलि को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ कोई भी नकारात्मक या भ्रामक विज्ञापन तुरंत बंद करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना प्रतिस्पर्धा के उसूलों के खिलाफ है और ग्राहकों को भ्रमित करता है।
कब होगी अगली सुनवाई?
इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई 2025 को होगी। तब तक पतंजलि पर यह रोक जारी रहेगी और उसे अदालत के आदेशों का पालन करना होगा।
क्यों है यह फैसला अहम?
डाबर च्यवनप्राश भारत में सबसे बड़ा ब्रांड माना जाता है, जिसकी बाज़ार में 61.6% हिस्सेदारी है। ऐसे में पतंजलि के दावों का सीधा असर डाबर की छवि और बिक्री पर पड़ सकता है। कोर्ट का यह फैसला उपभोक्ताओं को गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर सख्ती से लगाम लगाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।