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ऑपरेशन सिंदूर : INDIA ब्लॉक की 16 पार्टियों ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, संजय राउत बोले- ‘क्या हम ट्रंप को बोलें कि संसद सत्र बुलाओ?’

ऑपरेशन सिंदूर और हालिया कूटनीतिक हालात पर विस्तृत चर्चा की मांग को लेकर INDIA ब्लॉक की 16 विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखते हुए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। इन दलों का कहना है कि देश की जनता और संसद दोनों को जवाब चाहिए और इस पर खुली बहस होनी चाहिए।

किन पार्टियों ने लिया हिस्सा?

इस बैठक में शामिल प्रमुख राजनीतिक दलों में शामिल हैं…
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (AITMC), शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), नेशनल कांफ्रेंस (एनसी), CPIM, आईयूएमएल, CPI, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), वीसीके, केरल कांग्रेस, एमडीएमके, और सीपीआई (एमएल)

बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में AITMC के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, “हम सब यहां देशहित में खड़े हैं। ऑपरेशन सिंदूर, पुंछ और उरी जैसी घटनाओं पर संसद में चर्चा होनी चाहिए। संसद सरकार से जवाब मांगे, यही लोकतंत्र है।”

AAP अलग से लिखेगी चिट्ठी

आम आदमी पार्टी (AAP) ने फिलहाल इस पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं लेकिन उसने स्पष्ट किया है कि वह इस मुद्दे पर अलग से प्रधानमंत्री को पत्र लिखेगी।

विपक्षी नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया

सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा: “अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने युद्धविराम की घोषणा कर दी, ये भारत की प्रतिष्ठा के लिए चिंताजनक है। क्या हमारी विदेश नीति इतनी निर्भर हो गई है कि निर्णय वॉशिंगटन से आएं? संसद को इस पर चर्चा करनी चाहिए।”

कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने कहा: “पहलगाम हमले के बाद विपक्ष ने सरकार और सेना का पूरा समर्थन किया। अब सीजफायर की घोषणा के बाद हमें संसद में सरकार की नीति पर चर्चा चाहिए।”

शिवसेना (उद्धव) के नेता संजय राउत ने सवाल उठाया: “अगर अमेरिका के कहने पर युद्ध रोका जा सकता है, तो क्या भारतीय विपक्ष के कहने पर संसद सत्र नहीं बुलाया जा सकता? या अब हमें ट्रंप से कहना होगा कि वो संसद सत्र बुलवाएं?”

क्या है मामला?

हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर, सीमा पार हमलों और उसके बाद हुए सीजफायर की घोषणा, जिसने कथित रूप से अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद आकार लिया — इन सभी घटनाओं ने विपक्षी दलों को सतर्क कर दिया है। उनका मानना है कि इससे भारत की कूटनीतिक साख पर असर पड़ा है और सरकार को इस पर संविधानिक संस्थाओं के भीतर जवाब देना चाहिए।

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