🕒 Published 4 weeks ago (1:27 PM)
Waqf Bill: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट संशोधन को लेकर चल रही सुनवाई बुधवार को दूसरे दिन भी जारी रही। इस दौरान केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए साफ कहा कि वक्फ एक इस्लामिक कॉन्सेप्ट जरूर है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में जोरदार दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि चैरिटी (दान-पुण्य) की परंपरा हर धर्म में है – चाहे हिंदू धर्म हो, सिख धर्म हो या ईसाई धर्म। लेकिन किसी भी धर्म में इसे जरूरी नहीं माना गया है। ऐसे में वक्फ को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा बताना तर्कसंगत नहीं।
मेहता ने यह भी कहा कि अगर कोई मुस्लिम आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है और वक्फ नहीं कर सकता, तो क्या वह मुस्लिम नहीं रहेगा? इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट यह तय करता है कि कोई परंपरा जरूरी धार्मिक प्रथा है या नहीं।
सरकार ने कहा – वक्फ कानून सबके सुझाव से बदला गया
केंद्र ने यह भी बताया कि वक्फ एक्ट में संशोधन किसी जल्दबाजी में नहीं हुआ है। इसके लिए करीब 97 लाख लोगों से राय ली गई थी और 25 वक्फ बोर्डों से सलाह ली गई। साथ ही कई राज्य सरकारों ने भी अपने सुझाव दिए थे। तुषार मेहता ने कहा, “हर क्लॉज पर विस्तार से चर्चा की गई, कुछ सुझाव मान लिए गए और कुछ नहीं।”
क्या सरकार खुद अपने दावे की पुष्टि कर सकती है?
सुनवाई के दौरान जज बीआर गवई ने सवाल उठाया कि क्या सरकार अपनी ही दावे की पुष्टि खुद कर सकती है? इस पर एसजी मेहता ने माना कि नहीं, सरकार ऐसा नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि पहले कलेक्टर को ये अधिकार दिए गए थे, लेकिन बाद में संसदीय समिति (JPC) ने सुझाव दिया कि कोई अन्य अधिकारी नामित किया जाए।
SG मेहता का जोरदार तर्क – जमीन के असली मालिक की जांच जरूरी
एसजी ने कहा कि वक्फ “बाय यूजर” की स्थिति में, अगर कोई सरकारी जमीन पर सालों से किसी धार्मिक ढांचे का उपयोग कर रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह जमीन उसकी हो गई। सरकार ट्रस्टी के तौर पर जमीन की देखरेख करती है और उसका हक है कि वह जांच करे कि असली मालिक कौन है।
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