🕒 Published 1 month ago (8:58 PM)
6 जुलाई को अपना 90वां जन्मदिन मनाने जा रहे तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने चीन की दखलअंदाजी को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि दलाई लामा की परंपरा खत्म नहीं होगी और अगला दलाई लामा कौन होगा, इसका निर्णय न तो चीन करेगा और न ही उसे इसमें किसी तरह का हस्तक्षेप करने का अधिकार होगा। यह फैसला तिब्बती बौद्ध समुदाय और गाडेन फोडरंग ट्रस्ट ही करेगा।
बुधवार को दलाई लामा ने 2011 में दिया गया अपना ऐतिहासिक बयान दोबारा जारी किया। इसमें उन्होंने कहा है कि दलाई लामा की अगली पहचान कैसे होगी, यह तय करने का अधिकार सिर्फ तिब्बती लोगों और बौद्ध धर्म के अनुयायियों को है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि दलाई लामा की परंपरा न खत्म होने वाली है, न ही इसका अधिकार किसी बाहरी ताकत को दिया जा सकता है।
6 जुलाई को उत्तराधिकारी के नाम का हो सकता है ऐलान
इस बार उनके जन्मदिन को विशेष माना जा रहा है क्योंकि इस अवसर पर वे अपने उत्तराधिकारी के चयन को लेकर महत्वपूर्ण घोषणा कर सकते हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि दलाई लामा चीन की दखल को रोकने के लिए परंपरागत प्रक्रिया को बदल सकते हैं और खुद ही अगले दलाई लामा का नाम घोषित कर सकते हैं।
चीन का विवादित पंचेन लामा
गौरतलब है कि 1995 में चीन ने अपनी तरफ से ग्याल्त्सेन नोरबू को पंचेन लामा घोषित कर दिया था, जिसे तिब्बती बौद्ध समुदाय ने कभी स्वीकार नहीं किया। वहीं, 14वें दलाई लामा ने गेधुन चोएक्यी न्यिमा को 11वां पंचेन लामा मान्यता दी थी, जिन्हें बाद में चीन ने गायब कर दिया और आज तक उनका कोई पता नहीं है। यह घटना तिब्बती समुदाय के लिए चेतावनी बनी रही है कि चीन भविष्य में दलाई लामा के चयन को भी प्रभावित कर सकता है।
किताब में किया था बड़ा खुलासा
मार्च 2025 में प्रकाशित अपनी किताब Voice for the Voiceless में दलाई लामा ने इशारा किया था कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर किसी स्वतंत्र देश में जन्म लेगा और वह शिशु के बजाय व्यस्क भी हो सकता है। यह घोषणा चीन के उन मंसूबों को कमजोर कर सकती है, जिसके तहत वह अपने प्रभाव में एक “दलाई लामा” खड़ा करना चाहता है।
निर्वासित सरकार भी कर रही पुष्टि
तिब्बती निर्वासित सरकार यानी सेंट्रल तिब्बतियन एडमिनिस्ट्रेशन (CTA) के नेता पेनपा त्सेरिंग और डोलमा त्सेरिंग ने भी संकेत दिया है कि 6 जुलाई को दलाई लामा अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो यह तिब्बती समुदाय और वैश्विक राजनीति के लिए ऐतिहासिक क्षण होगा।
चीन की नाराजगी और विरोध
दलाई लामा 1959 में तिब्बत में असफल विद्रोह के बाद भारत आ गए थे। तब से वे चीन की नजरों में हमेशा से ही संदिग्ध रहे हैं। चीन उन्हें ‘अलगाववादी’ कहता है और उन्हें ‘भिक्षु के वेश में भेड़िया’ जैसे अपमानजनक शब्दों से नवाज चुका है। लेकिन विश्व समुदाय में उनकी छवि शांतिदूत की रही है, जिसके चलते उन्हें 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला था।
कौन हैं दलाई लामा?
दलाई लामा का असली नाम तेनजिन ग्यात्सो है। साल 1939 में जब वे मात्र 4 साल के थे, तब उन्हें 14वें दलाई लामा के रूप में मान्यता दी गई थी। वर्तमान में वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित त्सुग्लाखांग मंदिर परिसर में रहते हैं और वहीं से तिब्बती समुदाय का नेतृत्व करते हैं।